विद्या भारती : अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान

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परिचय:

विद्या भारती का पूरा नाम “विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान” है। यह शिक्षा के क्षेत्र में सबसे बड़ी अशासकीय संस्था है। इसके अन्तर्गत भारत में लगभग १८,००० शैक्षिक संस्थान कार्य कर रहे हैं। इसकी स्थापना सन् १९७७ में हुई थी। विद्या भारती, शिक्षा के सभी स्तरों – प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्च पर कार्य कर रही है। इसके अलावा यह शिक्षा के क्षेत्र में अनुसंधान करती है। इसका अपना ही प्रकाशन विभाग है जो बहुमूल्य पुस्तकें, पत्रिकाएँ एवं शोध-पत्र प्रकाशित करता है।

शिक्षा के क्षेत्र का सबसे बड़ा गैर सरकारी संगठन है। विद्या भारती संघ परिवार का एक अंग है। विद्या भारती के तहत, ३०००० शिक्षण संस्थान संचालित होते है। विद्या भारती शिशुवाटिका, प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, माध्यमिक, वरिष्ठ माध्यमिक, संस्कार केंद्र, एकल विद्यालय, पूर्ण एवं अर्द्ध आवासीय विद्यालय और महाविद्यालयों के छात्रों के लिए शिक्षा प्रदान करता है।

स्थापना व इतिहास :

आज लगभग सम्पूर्ण भारत में 86 प्रांतीय एवं क्षेत्रीय समितियाँ विद्या भारती से संलग्न हैं। इनके अंतर्गत कुल मिलाकर 23320 शिक्षण संस्थाओं में 1,47,634 शिक्षकों के मार्गदर्शन में 34 लाख छात्र-छात्राएं शिक्षा एवं संस्कार ग्रहण कर रहे हैं। इनमें से 49 शिक्षक प्रशिक्षक संस्थान एवं महाविद्यालय, 2353 माध्यमिक एवं 923 उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, 633 पूर्व प्राथमिक एवं 5312 प्राथमिक, 4164 उच्च प्राथमिक एवं 6127 एकल शिक्षक विद्यालय तथा 3679 संस्कार केंद्र हैं। आज नगरों और ग्रामों में, वनवासी और पर्वतीय क्षेत्रों में झुग्गी-झोंपड़ियों में, शिशु वाटिकाएं, शिशु मंदिर, विद्या मंदिर, सरस्वती विद्यालय, उच्चतर शिक्षा संस्थान, शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र और शोध संस्थान हैं। इन सरस्वती मंदिरों की संख्या निरंतर बढ़ रही है और आज विद्या भारती भारत में सबसे बड़ा गैर सरकारी शिक्षा संगठन बन चुका है।

1952 में संघ प्रेरणा से कुछ निष्ठावान लोग शिक्षा के पुनीत कार्य में जुटे। राष्ट्र निर्माण के इस कार्य में लगे लोगों ने नवोदित पीढ़ी को सुयोग्य शिक्षा और शिक्षा के साथ संस्कार देने के लिए “सरस्वती शिशु मंदिर” की आधारशिला गोरखपुर में पांच रुपये मासिक किराये के भवन में पक्की बाग़ में रखकर प्रथम शिशु मंदिर की स्थापना से श्रीगणेश किया। इससे पूर्व कुरुक्षेत्र में गीता विद्यालय की स्थापना 1946 में हो चुकी थी।

उत्तर प्रदेश में शिशु मंदिरों के संख्या तीव्र गति से बढ़ने लगी। इनके मार्गदर्शन एवं समुचित विकास के लिए 1958 में ‘शिशु शिक्षा प्रबंध समिति’ नाम से प्रदेश समिति का गठन किया गया। सरस्वती शिशु मंदिरों को सुशिक्षा एवं सद्संस्कारों के केन्द्रों के रूप में समाज में प्रतिष्ठा एवं लोकप्रियता प्राप्त होने लगी। अन्य प्रदेशों में भी जब विद्यालयों की संख्या बढ़ने लगी तो उन प्रदेशों में भी प्रदेश समितियों का गठन हुआ। पंजाब एवं चंडीगढ़ में सर्वहितकारी शिक्षा समिति, हरियाणा में हिन्दू शिक्षा समिति बनी। इसी प्रयत्न ने 1977 में अखिल भारतीय स्वरुप लिया और विद्या भारती संस्था का प्रादुर्भाव दिल्ली में हुआ। इसके बाद सभी प्रदेश समितियां विद्या भारती से सम्बद्ध हो गईं।

 दर्शन, लक्ष्य और उद्देश्य :

शैक्षिक चिंतन का अधिष्ठान — हिन्दू जीवन दर्शन

1. भारतीय शिक्षा दर्शन का विकास
विद्या भारती एवं राष्ट्र भक्त शिक्षा शास्त्रियों का यह स्पष्ट मत है कि शिक्षा तभी व्यक्ति एवं राष्ट्र के जीवन के लिए उपयोगी होगी जब वह भारत के राष्ट्रीय जीवन दर्शन पर अधिष्ठित होगी जो मूलतः हिन्दू जीवन दर्शन है. अतः विद्या भारती ने हिन्दू जीवन दर्शन के अधिष्ठान पर भारतीय शिक्षा दर्शन का विकास किया है. इसी के आधार पर शिक्षा के उददेश्य एवं बालक के विकास के संकल्पना निर्धारित की है.

2. शिक्षण पद्धति का आधार – भारतीय मनोविज्ञान
शिक्षा पद्धति का निर्धारण मनोविज्ञान के द्वारा होता है. प्रचलित शिक्षण पद्धति का आधार पश्चीमी देशों में विकसित मनोविज्ञान है जो विशुद्ध भौतिकवादी दृष्टिकोण पर आधारित है. हिन्दू जीवन दर्शन पर आधारित भारतीय शिक्षा दर्शन के अनुसार बालक के सर्वांगीण विकास की अवधारणा विशुद्ध आध्यात्मिक है. परिपूर्ण मानव के विकास के संकल्पना पश्चिमी मनोविज्ञान पर आधारित शिक्षण पद्धति के द्वारा पूर्ण होना कदापि संभव नहीं है. अतः विद्या भारती ने भारतीय मनोविज्ञान का विकास किया है और उसी पर अपनी शिक्षण पद्धति को आधारित किया है तथा उसका नामकरण “सरस्वती पंचपदीय शिक्षण विधि” किया है.
उसके पांच पद हैं :-
1.  अधीति
2.  बोध
3.  अभ्यास
4.  प्रसार-स्वाध्याय एवं प्रवचन. प्राथमिक स्तर पर “सरस्वती शिशु मंदिर शिक्षण पद्धति”

5. पूर्व प्राथमिक स्तर पर “शिशु वाटिका शिक्षण पद्धति” के नाम से इसे शिक्षा जगत में प्रतिष्ठा प्राप्त हुई.

 संगठन :

बालक ही हमारी आशाओं का केंद्र है. वही हमारे देश, धर्म एवं संस्कृति का रक्षक है. उसके व्यक्तित्व के विकास में हमारी संस्कृति एवं सभ्यता का विकास निहित है. आज का बालक ही कल का कर्णधार है. बालक का नाता भूमि एवं पूर्वजों से जोड़ना, यह शिक्षा का सीधा, सरल तथा सुस्पस्ट लक्ष्य है. शिक्षा और संस्कार द्वारा हमें बालक का सर्वांगीण विकास करना है.

प्रथम सरस्वती शिशु मंदिर –

बस यही स्वप्न लेकर इस शिक्षा क्षेत्र को जीवन साधना समझकर 1952 में, संघ प्रेरणा से कुछ निष्ठावान लोग इस पुनीत कार्य में जुट गए. राष्ट्र निर्माण के इस कार्य में लगे लोगों ने नवोदित पीढ़ी को सुयोग्य शिक्षा और शिक्षा के साथ संस्कार देने के लिए “सरस्वती शिशु मंदिर” की आधारशिला गोरखपुर में पांच रुपये मासिक किराये के भवन में पक्की बाग़ में रखकर प्रथम शिशु मंदिर की स्थापना से श्रीगणेश किया. इससे पूर्व कुरुक्षेत्र में गीता विद्यालय की स्थापना 1946 में हो चुकी थी. मन की आस्था, ह्रदय का विकास, निश्चय की अडिगता तथा कल्पित स्वप्न को मन में लेकर कार्यकर्ताओं के द्वारा अपने विद्यालयों का नाम, विचार कर “सरस्वती शिशु मंदिर” रखा गया. उन्हीं की साधना, तपस्या, परिश्रम व संबल के परिणामस्वरुप स्थान-स्थान पर “सरस्वती शिशु मंदिर” स्थापित होने लगे.
उत्तर प्रदेश में शिशु मंदिरों के संख्या तीव्र गति से बढ़ने लगी. इनके मार्गदर्शन एवं समुचित विकास के लिए 1958 में शिशु शिक्षा प्रबंध समिति नाम से प्रदेश समिति का गठन किया गया. सरस्वती शिशु मंदिरों को सुशिक्षा एवं सद्संस्कारों के केन्द्रों के रूप में समाज में प्रतिष्ठा एवं लोकप्रियता प्राप्त होने लगी. अन्य प्रदेशों में भी जब विद्यालयों की संख्या बढ़ने लगी तो उन प्रदेशों में भी प्रदेश समितियों का गठन हुआ. पंजाब एवं चंडीगढ़ में सर्वहितकारी शिक्षा समिति, हरियाणा में हिन्दू शिक्षा समिति बनी. इसी प्रयत्न ने 1977 में अखिल भारतीय स्वरुप लिया और विद्या भारती संस्था का प्रादुर्भाव दिल्ली में हुआ. सभी प्रदेश समितियां विद्या भारती से सम्बद्ध हो गईं.

 विद्या भारती के प्रकाशन :

१. “विद्या भारती प्रदीपिका” त्रैमासिक पत्रिका, दिल्ली से प्रकाशित होती है.
२. “देवपुत्र” मासिक पत्रिका बाल-किशोर छात्रों के लिए इंदौर से प्रकाशित होती है.
३. “भारतीय शिक्षा शोध पत्रिका” लखनऊ से प्रकाशित होती है.

इसके अतिरिक्त अन्य साहित्यिक एवं संस्कृति ज्ञान परीक्षा सम्बन्धी पुस्तकें कुरुक्षेत्र से प्रकाशित होती हैं. |

 विद्या भारती के अंतर्गत विद्यालयों में शारीरिक शिक्षा ,योग शिक्षा,नैतिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा,संस्कृत भाषा,संगीत शिक्षण आदि का समावेश होता है |  

 आवासीय विद्यालय :

विद्या भारती से सम्बद्ध आवासीय विद्यालय इस समय देशभर में चल रहे हैं. लगभग हर प्रान्त में एक आदर्श आवासीय विद्यालय की स्थापना हो चुकी है. इन आवासीय विद्यालयों में बालक चौबीस घंटे रहता है. प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में जागरण से रात्रि दस बजे तक आदर्श दिनचर्या का पालन करते हुए वे शिक्षण और सद्संस्कारों के वातावरण में विकास करते हैं. ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में उच्च स्तर तो प्राप्त करते ही हैं, साथ ही भारतीय संस्कृति, धर्म एवं राष्ट्र भक्ति आदि जीवन मूल्यों से उनका जीवन पुष्पित एवं पल्लवित होकर सद्गुणों से सुगन्धित होता रहता है. दिनभर में इस समय 66 आवासीय विद्यालय हैं.

 भारतीय शिक्षा शोध संस्थान :

आचार्यों के द्वारा शिक्षण में नए-नए प्रयोग एवं शोध (रिसर्च) करने के लिए, जबलपुर, उज्जैन, जयपुर, चंडीगढ़, मेरठ और वाराणसी में शोध केंद्र खोले गए हैं. भारतीय शिक्षा शोध संस्थान, लखनऊ में स्थित है. जहाँ से “भारतीय शिक्षा शोध पत्रिका” का प्रकाशन नियमित रूप से होता है. यह पत्रिका विशेष रूप से आचार्यों के लिए प्रेरणादायक एवं लाभप्रद है. शोध कार्य का मुख्य क्षेत्र शिक्षण पद्धति, भारतीय शिक्षा मनोविज्ञान, अभिवृत्तियों का मापन, परीक्षण एवं उपलब्धियों का मूल्यांकन आदि करना है.

विद्या भारती का जाल स्थल ( वेब साईट ) नीचे दिया गया है : http://vidyabharti.net

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